बलात्कार
” बलात्कार ”
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कुदरत का बेजोड़ करिश्मा ,
मानव का निर्माण किया |
सुन्दर बदन,प्रखर चेतना,
बल बुद्धि परिणाम दिया ||
मीठी वाणी मुक्तल पाणि ,
दिशा,देश,पहचान दिया |
श्रेष्ठ धरा पर,श्रेष्ठ जनों को ,
ईदर और सम्मान दिया ||
नव-सृजन को प्रेत्त मस्तक ,
नई राह ,नव-ज्ञान दिया |
युक्ति-मुक्ति ,शक्ति-भक्ति ,
दिव्य योग ,नव ध्यान दिया ||
लिया मनुज ने भर-भर झोली,
विकसित कर ली भाषा बोली |
मगर ! किया कुछ ऐसा उसने ,
सहित गगन के धरती डोली ||
सुख सुविधा का पार नहीं ,
भाँति-भाँति के कर व्यापार |
धन दौलत के भरे खजाने ,
मन खाली ,खिसका आधार ||
सद्भावों का हुआ अकाल ,
दूषित कर्म,बढ़े अत्याचार |
प्रेम से छलते ,प्रीत लूटते ,
कर भावों का बलात्कार ||
बसी वासना ,मूढ़ मनुज में ,
होते हैं , रिश्ते तार-तार |
नहीं सगा है ,हुआ पराया ,
सब रिश्तों का बलात्कार ||
सृष्टि-रूपा ,प्रथम पूजिता ,
लाजरूप सोलह श्रृंगार |
पग-पग पर है चीर हरण ,
नित मानवता का बलात्कार ||
ईश्वर की मुस्कान जहाँ पर ,
अद्भुत बाल ,कवि लाचार |
नन्हें-मुन्हे देवदूतों का ,
गली-गली में बलात्कार ||
कौन है अपना ,कौन पराया ?
किस पर हो विश्वास अपार !
जहाँ थामने कोमल अँगुली ,
वहीं विश्वास का बलात्कार ||
मानव-धर्म भूलता मानव ,
बिकता गलियों और बाजार |
निर्बल -मूक देखता रहता ,
मानवता का बलात्कार ||
शर्म -हया ,डर रहा नहीं ,
दौलत से चलता संसार |
बौने हो गये संयम सीख !
बढ़ता दिन-दिन बलात्कार ||
कमी नहीं है मेरे देश में ,
बली, सूरमा ,वीरों की |
पाप-नाश को बारिश कर दें ,
शमशीरों और तीरों की ||
देरी अब घाततक होगी ,
जाग उठो ! मानुष मरदान |
बल के कार बंद कराओ ,
जीवन को दो ,अभय का दान ||
(विमला महरिया “मौज”)