बरसो रे मेघा झर-झर
आइ कारि मेघ घिरल
रूप ओतबे उतान
भीजतय ओ धरा
जे बड्ड पियासल
केउ देखै उपर
केउ नीचे
उडैत धूल
पियासल मनुख
माटि केर सेवक
ओ देसक क्रांतिवीर
फूल लऽ बाट निहारैत
ज्वार कैयसे बुझत
बरसु हे मेघ झर-झर
मायक ममता जइसे
बड्ड निन्न मे सोयब
बड्ड उमंगसँ जागब
आखि मुन्नी लैत छी
बरसो रे मेघा झर-झर
एक बुन्न अमृत
फेर घटा घनघोर
अन्हरिया जइसे छटल
आह वाह बड्ड सुनर
सोनगर सन
तिरपित भेल भागीरथी
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य