बरसों का इंतजार
धड़कने थम गई,
साँसे धौकनी सी
चलने लगी……
रोम – रोम सिहर
उठा……..
आँखे तो बह
चली………
चट्टान हुए
मन के पहाड़ को
तोड़ कर……
पहाड़ी झरने सी…..
शब्द मौन हो गए
पैर जड़ हो गए,
हांथ कस के
चिपक गए
एक दूसरे से,
तुम सामने थे मेरे
बरसों के इंतजार के बाद।
डॉ प्रिया सोनी खरे