बरसात
#बरसात
जिसे अपने लिए समझते थे सही,
धोखा अपनों से मिलता यहीं।
सुना सुना है मन कुछ अच्छा नहीं,
इस बार सावन में बरसात नहीं।।
इस बार सावन में बरसात नहीं…
तुम ही तो थे जीवन के राही,
मुझसे बेवफा क्यों हुआ माहीं।
तेरी कसमें वादे गये कहीं,
अब कैसे बिताऊं जीवन यहीं।।
इस बार सावन में बरसात नहीं…
नयन बरस रहें सिर्फ आंसू ही,
दिन रात घर में अंधेरा यहीं।
दिखता इस पुनम में चांद नहीं,
इन रातों की होती सुबह नहीं।।
इस बार सावन में बरसात नहीं…
दर्द के साथ ही उम्र गुजर रही,
इससे गहरा कोई सदमा नहीं।
आंखों में मेरे रोज़ रोज़ आ रही,
समझते नहीं बारिश कहां हो रही।।
इस बार सावन में बरसात नहीं…
इस बार सावन में बरसात नहीं…
स्वरचित -कृष्णा वाघमारे,जालना, महाराष्ट्र