बरसात️️
बरसात ©
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आज तन-मन मेरा थिरक उठा है
इन रिमझिम रिमझिम बूंदों के संग |
आज ख़ुशी में झूम उठी हूँ
देख इन निराले बादलों के ढंग ||
बूँद-बूँद आज नाच उठी हैं
गिर के बादलों से छूट चुकी हैं |
सूखी धरती को चूम चुकी हैं
आज प्यास पुरानी मिट चुकी हैं ||
पत्ता-पत्ता हुआ धुला-धुला सा
साफ सुथरा चमकीला सा |
सब कुछ हो गया गीला गीला सा
बारिश से हुआ आसमान नीला सा ||
घुमड़-घुमड़ ये मेघ हैं गरजे
उमड़ उमड़ ये टिप -टिप बरसे |
नैन ये देखन प्रीत को तरसे
संग बारिश-रुपी ये आंसू बरसे ||
चारों तरफ हैं बारिश की फुहार
खेतों में भी बस आने को हैं बहार |
बैलों को खिला – पिला कर
किसान खेत जोतने को हुए तैयार ||
बहती धारा में बच्चे सारे
कागज़ की बनी नाव चलायें |
बारिश की बूंदों में खूब भीगें
पानी भरे गड्ढों में नाचें – कूदें ||
आज हैं मिट्टी सारी गीली-गीली
चलो बनाये घर-घरौंदे या कोई बिल्ली |
या फिर कोई गुड़िया, तोता या मूर्ती
गीली मिट्टी के आनंद की हम करें पूर्ति ||
जान-जान में आज प्राण हैं आये
नर-नारी हो या हो प्रीत पराये |
पशु – पक्षी , ये सबको लुभाए
रिमझिम रिमझिम ये बरसे जाए ||
मोर नाच उड़ा हैं पँख फैला के
जैसे पीठ पे कोई छाता लगा के |
थिरका रहा हैं पंखो को ऐसे
ख़ुशी से झूम उठा हो जैसे ||
अमृत मिल गया हैं अब पौधों को
औऱ बीज नये अब पनप उठेंगे |
बाग़ बगीचे मैदान औऱ जंगल
सब के सब हरियाली से लबालब होंगे ||
पानी का झरना सा हैं, गिरा जा रहा
नदी,नालों, धाराओं से,बहता आ रहा |
जा मिला हैं समुद्र में, हुआ लबालब
मानो कुछ समय के लिये सब, डूबा जा रहा ||
धुल गयी हैं ये प्रकृति सारी
मिट गयी जो प्यास थी जारी |
अब पनपेंगे हजार किस्मे के
पेड़,पौधे औऱ लताएं निराली ||
बारिश में सब नाहा लो रे भाई
थोड़ा मनमौजी हो लो रे भाई |
अभी तो मौका हैं कर लो भरपायी
फिर तो अगले साल होंगी इसकी मुँह दिखाई ||
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स्वरचित एवं
मौलिक कविता
लेखिका :-
©✍️सुजाता कुमारी सैनी “मिटाँवा”
लेखन की तिथि :-15 जून 2021
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