बरसात
तेरी हल्की सी बूंद की खुशबू में प्रकृति की डाली झुक जाये
एक राह में बैठे तके सह तेरी जैसे कंठो की स्याही सूख जाये
एक आस तू नि:श्वास ह्रदय की आ अब धरा पावन तो कर
रूंख बने श्रृंगार तेरा राह बदरा से आ पूर्ण सावन तो कर
हे प्राण सुधा रस ईला तेरे पयस्विनी-तुंग तुझे बुला रहे
हलधर-गिरधर राह तके ज्यों ममत्व शिशु को सुला रहे
है ह्रदय अधीर है परम पीर तू निज श्वास में रस तो भर
कर कौतुहल रिमझिम पायल का आ तपत में कस तो भर
है मौन ईला एक धीर पीर तू सुखद राह में आस तो भर
पत्थराई आँख सूखी है कली वृक्ष घास को श्वास तो भर
दे मेघ गर्जना श्याम वर्ण वर्षा तू भारत घनघोर बरस
करदे तन मन स्वर्णिम रज परम श्रेय मे भर दे सरस
आ पावस तेरी एक बूंद ज्यों निज रेसो में सोम भरे
करे श्रृंगार मन ह्रदय द्रूम अपनी आंचल की रोम करे
हे श्याम वर्णी सुख दायक मातृरूप पदार्पण करे
करे हलवाह विनित धरित्री तू हर जीव को तर्पण करे