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9 Jun 2021 · 1 min read

बरसात

वर्षा की बूंदों सी तुम मुझे लगती हो,
सावन में हल्की धूप सी तुम खिलती हो,
लगती हैं ऐसी मुझे तेरे होठों की हंसी,
बूंदो की जैसी कोई हो फुरफुरी,
वर्षा की बूंदो सी तुम मुझे लगती हो,
ओढ़ के तुम रिमझिम की चादर,
फुआरो की तरह तुम खिलखिलिया करोगी तुम
लगता हैं मुझे हर दिन तुम बारिश
में ही बुलाया करोगी
बोलोगी कभी इतराके कभी खिलखिला के
छतरी की मुझको क्या है पड़ी
वर्षा की बूंदो सी तुम मुझे लगती हो,
यह रिमझिम बारिश युही बरशती रहे
यह सावन युही गूँजता रहे
बारिश जैसा आनंद कहा
नाले नदियों बहने लगती हैं
बारिश के बाद गाँवो में हरियाली से
खेत खिलने लगते हैं।
आ जाहो तुम मेरी बाहों में
चादर ओढ़ कर चलते बार
वर्षा की बूंदो सी तुम लगती हो

शंकर आँजणा नवापुरा धवेचा
बागोड़ा जालोर

6 Likes · 14 Comments · 438 Views
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