बरसात
ओ मेरी प्यारी ननद बरखा रानी, अब तो चली जाओ वापस अपने देश ….?
मेरी छुई-मुई,?ये कहावत तो तुमने भी सुनी ही होगी कि, कमाऊ पूत और सासरे जाती बेटी ही सबको अच्छी लगती है । देख लो बहन ,एक तो सावन आने से पहले ही तुम आ गयी!हमने तो सोचा की राखी मना के तो अपने घर चली ही जाओगी,लेकिन ना ? तुम तो गयी ही नहीं ?
चलो ठीक है मान ली तुम्हारी बात,बेटी को पीहर मे रहना तो अच्छा लगता ही है तो 10-15दिन और सही। लेकिन लो, तुम तो यही जम गयी ?
अब तो भादो भी पुरा हुआ ,फिर भी तुम जाने का नाम क्यू नही ले रही हो।
देखो बहन पुराने जमाने की बात और थी,ज्यादतर घर भी बड़े-बड़े होते थे और लोगों के दिल मे जगह भी उतनी ही बड़ी । पर अब नये जमाने के छोटे-छोटे घरों में मेहमानों को ठहराना बरी मुश्किल है ।ऊपर से तुम हो की एक जगह तो रुकती नही,हर कमरे मे हर जगह तो तुम ही पसर जाती हो ..सबको परेशान कर दिया तुमने?
अरी ओ बरसात बाई अब तो गणपति भी गये?क्यू भाई-भतीजे को परेशान करती हो।तुम्हारे नाना-नानी का भी नाम खराब होगा।कूछ दिन बाद ही और मेहमान भी आने वाले हैं मेरे पास ।ठन्ढ भी तो आयगी ना तभी जाओगी क्या अब?
हमने तुमको हरी पीली गोटे वाली चुन्नी भी ओढा दी है। ककड़ी,भुट्टे,भजिया ,गुलाब जामुन भी तो खिला ही दिये!!अब कृपा करो और जाओ तुम्हारे देश??
।।।।।।तुम्हारी भाभी ?।।।।।।
पल्लवी रानी
मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
कल्याण, महाराष्ट्र