#बरसात
धरा हुयी बेचैन तो , घन लाए बरसात को।
प्रेम उसे ही सब कहें , समझे उर ज़ज़्बात को।।
सूखे नद तालाब थे , तरुवर सभी उदास थे।
खुशियाँ देने आ गयी , बरसात मुलाक़ात को।।
गर्मी से बेहाल थे , पशु पक्षी इंसान सब।
मौसम ताज़ा कर गयी , बारिश दे सौग़ात को।।
घोर प्रदूषण धुल गया , हरियाली चहुँ ओर है।
शीतल पवनें बह रही , गर्मी देख निजात को।।
बूढ़े युवा किशोर सब , उत्साहित हैं आज तो।
बरसें बादल ओज में , जोश मिले मन गात को।।
मेघ गगन में देख कर , करता मोर पुकार जब।
सुन अंतर आवाज़ ये , मेघ निभाते नात को।।
सूखी भू घन धार से , सौंधी भरे सुगंध है।
आकर्षित हर मन करे , स्नेह-भरी शुरुआत को।।
#आर.एस.’प्रीतम’
#सर्वाधिकार सुरक्षित रचना