**बरसात**
ब
बन्धन से जब स्वतंत्र हों, ज्ञानदीप जले,
जले साथ ही अगणित शत्रु छिपे हुए तन में,
तन ही ज्ञानाज्ञानाश्रय है और विवेक शिखर,
शिखर पर बैठा प्रभु करता अमृत वर्षा।।1।।
र
रम जाना ही ऐसा हो, अपनी खोज करे,
खोज करे अद्भुत की,पाते जिसे विरले,
विरलों में भी विरले, छू पाते परम शिखर,
शिखर पर बैठा प्रभु करता अमृत वर्षा।।2।।
सा
सार ही सार दिखा जब असार को त्यागा,
त्यागा वह मार्ग भी जहाँ मोह, भ्रमों की माया,
माया भी ऐसी हो जो निर्माण करे परम शिखर,
शिखर पर बैठा प्रभु करता अमृत वर्षा।।3।।
त
तरुण,श्याम, शीतल, ज्यों तरु की छाया,
जब कोयल ने भोर तले कुल कुल स्वर है गाया,
गाया ऐसा गीत,जो दे देता नाद का परम शिखर,
शिखर पर बैठा प्रभु करता अमृत वर्षा।।4।।
©अभिषेक पाराशर