*** ” बरसात के मौसम में……..!!! ” ***
** बरसात में जब बरखा रानी आती है ,
तन-मन भीग जाती है ,
मन मचल जाये ऐसी ,
खुशियाँ अनमोल लाती है ।
सुखी-प्यासी धरती की प्यास भी बुझा जाती है ,
मेघों ने मानो झुमकर धरती की प्यास बुझाती है।
जब भी तुम आते हो ,
धरती में हरियाली छा जाती है ।
खिल उठता है सारा गगन ,
महक उठती है सारे बाग-बगीचों की चमन ।
पवन मचाये इतना शोर ,
जैसे मनोरंजित मन में करे कोई हिलोर ।
** हरियाली की चादर ओढ़ ,
धरती माँ संवर जाती है ।
घूमड़-घूमड़ कर घने बादल ,
इठलाने लग जाते हैं ;
हवायें शीतल और मन – मनोरंजित हो जाती है।
तेरे आने से मन चंचल हो जाता है ,
धरती पुत्र कृषक का ;
अन्ना के प्रदाता और भारत के भाग्य विधाता का ।
बरखा रानी के बूंदों की फुहार से ,
धुल जाते हैं पेड़-पौधों और लताओं के धूल ।
मेघों की बौछार से ,
मूसलाधारों की बहार से ,
हो जाता है जलमग्न धरती तल ।
बादलों में गड़गड़ाहट से
आसमान में तड़ित की चमक से ,
मन जरा दहल जाता है ।
ऊँचे-ऊँचे प्रासाद महल ,
और कुछ पेड़ों के तने टूट , जड़ भी हिल जाते हैं ।
घनीमुनी घुल गया बारिश बरस कर ,
गांवों की गलियारों से ,
बच्चों की किलकारियाँ भी गुम हो जाते हैं ।
*** मन भावन सा लगता है ,
जब आती है बरसात का सावन ;
हर चित-चितवन हो जाती है ,
मानो पुलकित हुआ पावन मन ।
सजनी को साजन ,
प्रेमी को प्रेमिका मन याद आती है ।
आसमान की तड़ित चमक ,
एकाकी मन को बहकाती है ।
भिन्न-भिन्न भावनाओं को ,
अनचाहे अनायास जगा जाती है ,
पपीहा-सी प्यासी मन को भी ,
बहुत तड़पा जाती है ।
सर-सर बहती हवाओं के तारों से ,
पागल मन मृदंग को छेड़ जाती है ।
पंछियों की नानी सुहेलिया (बया) ,
बैठ घोंसले में बरखा गीत जब सुनाती है
मानो कोई प्रेम-रंजित मन को हर्षा जाती है ।
रजनी-नीशा की चाँद-सितारों संग ,
लुका-छिपी की अठखेलियां ;
पपीहा मन को , कभी हर्षाती है
और कभी पागल मन को बहकाती है ।
*** तेरे आने से मौसम में अनेक परिवर्तन आ जाते हैं
कहीं घनघोर बारिश की क़हर…. ,
तो कहीं शीतलहर..
फिर भी हमारा अनमोल जीवन…
कहीं गम.., कहीं खुशी.. में यूं ही बीत जाती है।
तेरे आने से तालाब-पोखरों की जल-ऊर्मियां…,
पवन संग मचलती-इठलाती है ।
झरनों की कल-कल.. छल-छल… मधुर बोलियां ,
चराचर मन…को लुलोहित कर जाती है ।
तेरे प्रसाद की जलधाराओं संग ,
रुखी-सुखी नदियां भी अपने सागर से मिल जाती है ।
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बी पी पटेल
बिलासपुर (छ. ग.)
२०/०५/२०२१