बरसात की आस
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आषाढ़ मास
कर गया उदास!
सावन मास
बरसात की आस!
बरसों बीते
अब तो बरसाओ!
ना तरसाओ
माना, हैं दोषी हम!
पर्यावरण से
करी जो छेड़छाड़!
भुगत रहा
निर्दोष सब जन!
आज नहीं तो
कल, कल नहीं तो!
परसों आओ
वसुंधरा की तुम!
प्यास बुझाओ
व्याकुल तन मन!
तृप्त होकर
खिली बाग बगिया!
मोर, पपीहा
खूब चहचहाते!
युगल मदमाते!
___ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान