बरसात।
अब तो मेघ करो बौछार।
झुलस गये तृण-पात, विकल जन
नदी, सरोवर , तप्त निखिल वन,
व्यग्र कृषक- मन नित्य पुकारे
बरस मेघ, हर तम, अंगारे।
हरित, तृप्त कर दे संसार
अब तो मेघ करो बौछार।
ह्रदय – ह्रदय में व्याप्त सघन – डर
तृषित, क्षुधित जग आकुल, जर्जर,
विस्फारित दृग गगन निहारे
सलिल अमित ले मेघा आ रे।
सर, सरिता भर और कछार
अब तो मेघ करो बौछार।
जलद , मरुत संग जल भर लाना
नीर अपरिमित फिर बरसाना,
हर दिश मंजुल, तृप्त धरा हो
कुसुम सुरस मकरंद भरा हो।
धरती सुख का हो आगार
अब तो मेघ करो बौछार।
अनिल मिश्र प्रहरी।