बरखा
पावस पावनी बरखा ,बाँधै है पैरों घुघरूँ
मस्त फुहारों में झूमती , बाधे है पैरों घुघरूँ
मेघ मल्हार गाओ रे बरखा ऋतु सुखदायिनी
चप्पा चप्पा आह्लादित है ऋतु जीवनदायिनी
काली घटाएं मेघों छाए देख मयूरा हरषाये
दादुर की टर्र टर्र , कोयल की कूक मौन धारे
मन्द मन्द बूँदों में गिरती बाँधे है पैरों घुघरूँ
झनन झनन भू गिरे पिय मिलन को तरसे
घन में दामिनी चमके इधर जिया हुलसे
रिते ताल तलैया सारे भीगे है पोखर सारे
चारों तरफ है पानी पानी भरे है नाले सारे
मोती लड़ियों सी गिरती बाँधे है पैरों घुघरूँ