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29 Dec 2024 · 1 min read

बबूल

बबूल
बबुल भी हर बार,
बबुल नहीं होता है।
कभी कभी वह भी,
भरती दोपहर में,
तप तपती रेत पर,
जलते नंगे पेरो पर,
राहत बरसात करता,
एक गुलमोहर होता है।
(लेखक- डॉ शिव लहरी)

Language: Hindi
38 Views
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