बबूल
बबूल
बबुल भी हर बार,
बबुल नहीं होता है।
कभी कभी वह भी,
भरती दोपहर में,
तप तपती रेत पर,
जलते नंगे पेरो पर,
राहत बरसात करता,
एक गुलमोहर होता है।
(लेखक- डॉ शिव लहरी)
बबूल
बबुल भी हर बार,
बबुल नहीं होता है।
कभी कभी वह भी,
भरती दोपहर में,
तप तपती रेत पर,
जलते नंगे पेरो पर,
राहत बरसात करता,
एक गुलमोहर होता है।
(लेखक- डॉ शिव लहरी)