बन्धन
******अल सुबह******
चल पंछी पिंजरे के अंदर।
देख भला बन्धन के मंजर।
हो आजाद बहुत तू घूमा।
इस दर से उस दर को चूमा।
बन्धन तोड़ निकलना।
किससे मुक्ति ?क्यो चुनना।
कर संघर्ष बन्धन के अंदर।
यही है सहरा यही समंदर।
शुभ प्रभात
*******कलम घिसाई*******