“बनावटी बातें”
कहना हो जो कुछ भी,
सीधे साफ़ – साफ़ कहो,
अब तुम हमसे दुनियादारी,
इसकी उसकी न कहो।
साथ, समझौता,
साझेदारी, जो कहो,
इस मतलबपरस्ती को
दोस्ती न कहो।
चमक जहां से आती हैं,
नुमाईशी इन महलों में।
उन बेशकीमती खजानों को,
गंदी बस्ती न कहो।
तमाम मुकाम हासिल कर,
रह गए बुलंदी पर तन्हा।
ख़ुद ही के नज़रों में गिरने वाले को,
ऊंची हस्ती न कहो।
ओसमणी साहू ‘ओश’ रायपुर (छत्तीसगढ़)