बनारस के घाट
बनारस के घाट
बनारस के घाटों पर
सिर्फ़ कवियों की चिता
या समाधि नहीं लगाई जाती
अपितु वहाँ मुखाग्नि की चिंगारी से
कवियों और कविताओं का
जन्म होता आ रहा है
जन्म लेती है ऐसी कवितायें
जो पौष मास की ठंड को
अपनी ऊष्मा से गरमाती
मशाल और मिसाल बनतीं
उभरते कवि की रूह को
उकेरती एक जामा पहनाती है
जिसे न कभी कही हो किसी ने
न कभी सुनी हो किसी ने
कवितायें जो देश को
दिशा देने का सामर्थ्य रखती हो
समाज को आइना दिखाने
का दंभ भरती हो ।
पर ये तो भूतकाल का विवरण है
बनारस सामान्य भारत वर्ष सा क्यों दिख रहा है
मुखाग्नि तो आज भी जारी है
पर आज मशाल किसने थामा है
चिंगारी किसने पी रखी है
शोले कहाँ छुपा रखे हैं
और कहाँ छुपा रखे हैं
भविष्य को उसके वर्तमान से।
यतीश ८/१/२०१८