बनाकर चाँद को मामा
बनाकर चाँद को मामा नए रिश्ते जिलाती हैं
सुनाकर लोरियाँ बच्चों को जब माएँ सुलाती हैं
न आये आँख में आँसू तुम्हें कैसे दुआ दे दूँ
जियादा हों अगर खुशियाँ तो फिर वो भी रुलाती हैं
दिया जब गिर पड़ा झोंके से झोपड़ियों पे जाकर के
पता तब ये चला के आँधियाँ भी घर जलाती हैं
लिए छोटी सी लहरें आ रही हैं जो सलीके से
समंदर को ये नदियाँ अपना मीठा जल पिलाती हैं
खजानों की तरह जिनको छिपाए बैठा हूँ दिल में
वो यादें थपकियाँ देकर के बाहों में झुलाती हैं
बुरी रूहें चली जाती है चौखट छोड़कर ‘संजय’
तुम्हारे घर में बैठी बेटियाँ जब खिलखिलाती हैं