बधाई हो
हमारे जैसे कवियों का होता जब उपहास,
तू ही साहित्य पीडिया दिया स्नेहरस खास।
घर वालों के लिए कविता बकवास ही रहते,
पढना देखना तो दूर सुनने से भी डरते।
साहित्य पीडिया का मंच न होता,
कवित्व भाव दीमक के हिस्से का होता।
सच है! आती नहीं कविता की कोई विधा,
उठे भाव को लिख देते हम सीधा सीधा।
इसी मंच से मिली है एक पहचान,
मन में थोड़ी सी अभी भी व्यवधान।
दूषित मनसा सदा ही कुचलें जाए, पारदर्शी
आकृष्ट साहित्यपीडिया का ध्वज गगनचुम लहराए।
उमा झा 🙏