बदहवास सा भाग रहा
बदहवास सा भाग रहा, हर कोई दिखा वेताब यहां
कोई धन के पीछे भाग रहा,कोई तन के पीछे भाग रहा
कोई मन के पीछे रहा, कोई तन मन धन मांग रहा
बदहवास सा भाग रहा, हर कोई दिखा बेताब यहां
कोई दो जून की रोटी जुटा रहा,कोई शौक में पैसे लुटा रहा
कोई बेईमानी से कमा रहा, भ्रष्टाचार को बढ़ा रहा
बदहवास सा भाग रहा, हर कोई दिखा बेताब यहां
कोई प्यार में अपने पागल है, कोई नयन बाण से घायल है
कोई किसी का कायल है सब तो है बेताब यहां, सब बेताबी में पागल हैं
सबको जल्दी है पाने की, सब्र कहां दो आने की
सब बदहवास से भाग रहे, विना कर्म पा जाने की
बदहवास से भाग रहे, हर कोई दिखे वेताब यहां
सुरेश कुमार चतुर्वेदी