बदल क्यो नही जाता
बदल बेकार ही है ,तो बदल क्यो नहीं जाता ।
खुली दौड़ में शामिल हो, मचल क्यो नहीं जाता ।
जिंदगी भर साथ देने की वायदे करने वाले,
तूँ अच्छाईयों के बुत में ,ढल क्यो नहीं जाता।
तूने सीखा कहाँ से है फरेब इतना।
क्या करता है कभी गुरेज इतना ।
तूँ गिरता और गिरता है , सम्भल क्यों नही जाता।
बदल बेकार ही है ,तो बदल क्यो नहीं जाता ।
तूँ चला है अच्छे खयालात लिए।
पीठ पीछे कितने इल्जेमात लिए।
इल्जेमातों का ये जखीरा, जल क्यो नहीं जाता।
बदल बेकार ही है ,तो बदल क्यो नहीं जाता ।
कुछ अपना असल रंग दिखा देते हैं।
कुछ लोग एक सीख सीखा देते हैं।
समझ से काम लो ,के बीता कल नही आता।
बदल बेकार ही है ,तो बदल क्यो नहीं जाता ।
-सिद्धार्थ पाण्डेय