बदलाव
नासूर बन चुका है चाय – पानी का चलन,
घातक बन गया है ऐसे ही होता है का कथन।
आतंक बन चुका है सब चलता है का खयाल,
समाज में गंदगी बहुत फैल चुकी है।
इंतजार है सभी को एक मसीहा की,
मैं अकेला क्या कर सकता हूं,
सोचने वालों जरा अपनी सोच बदल के तो देखो।
बदलाव यहीं किसी मोड़ पर है,
ज़रा उस मोड़ पर पहुंच कर तो देखो।
चल पड़ेंगे लाखों कदम तुम्हारे संग,
तुम एक कदम आगे बढ़ा कर तो देखो।