अश्रुं की पहचान…..
आँखों में हैं दरियाँ
पर…वो ऐसे नहीं हैं छलकता !
आये कभी मौज का तूफ़ान वहाँ
या… हो कभी चाहत की भर्ती..!
मन के कोने-कोने में हुए हैं हरकत कहीं
जो छंछड़े हैं दिल को कहीं
तन को नहीं रहता होश तभी
आ जाएँ अश्रु की बारिश तभी
सोचो ऐसे ही सागर में होता होगा..!..!
दिल उसका भी दर्द से तड़पता होगा…!..!
या फिर… आयी होंगी कही से ख़ुशी…
तभी तो… वो मचलता होगा…
पर… सच्चाई क्या हैं..?
वो तो कैसे पहचाने….
वो दिव्य नजर कहाँ से लायें….!!!!