बदलते रिश्ते
रिश्ते
सबको देखा,अपनों को देखा,
गैरों को देखा,
सबको यहां रिश्ते बदलते देखा।
हृदय की वेदना को कराहते देखा,
देतें हैं जख्म रिश्ते ही
मानव को मानव पर ही प्रहार करते देखा।
क्यूं एक दूसरे से नफरत,
बेइंतहा करते
क्यूं एक दूसरे से झगड़ते आपस में,
फूलों से जीवन में,
नागफनी क्यों बोते।
हर इंसा से प्रीत करें,
घृणा ,छल,कपट दिल से हटा दें।
प्रेम उजियारा करके हृदय से,
काली रात का साया हटा दें।।
पनपने दो प्रेम के बीज हृदय में,
प्यार का इक वृक्ष उगनें दो
खिलने दो कुसुम -कलिका,
जीवन की स्वर्णिम बगिया में!!!!!
सुषमा सिंह *उर्मि,,