बदलते चेहरे
क्याा कहा,
वह छल प्रपंची और बेईमान हैं,
भीतरघात भी,
रहते चुपचाप ही,
करते जब प्रहार,
दिखता नहीं किसी को नजारा है।
क्याा कहा,
कला में माहिर हैं,
नफरत के बीज बोने में।
अशांति का टीले बनाकर,
दिखाता यह नहीं गंवारा है।
मेरे नजर में उनका सम्मान है,
वह तो बहुत महान हैं,
करते बहुत जनकल्याण हैं,
मुझे तो झूठी-फरेबी उनमें दिखती नहीं।
क्या कहा,
चेहरे उनके बदलते रहते हैं,
दिखाते हैं वे महान चेहरे,
बेईमान चेहरे तो छुपे रहते हैं।
—- मनहरण