बदलती करवटें देखो
बदलती करवटें देखो, सुलगती सलवटें देखो ।
उनींदी आँख, तकिये सँग, उलझती हैं लटें देखो ।
बरसते नैन के मेघो ! तरसते चैन को दिलबर ।
तुम्हारी याद में रातें, ठिठुरती अब कटें देखो ।
तड़पती रूह मिलने को, बदन तरसे पिघलने को,
मुझे सुलगा रहीं हैं जो, मिलन की चाहतें देखो ।
लवों की आस है सूनी, जले अरमान की धूनी,
अभी तक जो बचायी थीं, लगीं साँसें घटें देखो ।
सही जाती नहीं दूरी, कहें कैसे ये’ मजबूरी,
कज़ा ‘अंजान’ क़दमों की, दबी सी आहटें देखो ।
दीपक चौबे ‘अंजान’