बदलता देश
देश बदल रहा,
वेश बदल रहा,
बदल रही संस्कृति,
खो रहे रिवाज रीति,
कहाँ गया वो मन,
कहाँ गए वो जन,
लुप्त हो गई आत्मीयता,
सिसक रही है मानवता,
कैसा होगा आने वाला कल,
आज बिछा हैं हर तरफ छल,
सूख चुका स्नेह का जल,
अब भरा है स्वार्थ का मल,
जब साहित्य खाते धूल,
खतरे में होते नन्हे फूल,
बात बात का बनता तूल,
धरे रह जाते सब रूल,
।।जेपीएल।।