बदनसीब का नसीब
सर, उस बच्ची को सुप्रीम कोर्ट के जज साहब ने गोद ली है। दोनों दम्पत्ति आए थे। सारी कार्यवाही पूरी करने के बाद शाम की फ्लाइट से उस अनाथ बच्ची को ले गए। उनके कोई बच्चे नहीं थे। बच्चे को पाकर पति-पत्नी दोनों बहुत खुश थे। ये सब संस्था की अधीक्षिका ने मुझे बताया।
मैं सोचता रहा- महीने भर पहले काँटों के बीच सुन्दर सा कपड़ों में लिपटी हुई वह नवजात बच्ची मिली थी। उसके कोमल अंग पर लिपटा हुआ कपड़ा गवाही दे रहा था कि किसी धनाड्य परिवार की महिला ने लोक-लाज के भय से उसे झाड़ियों में फेंक दिया था।
अब वही बच्ची शानदार बंगले में पलकर महंगे स्कूलों में पढ़ेगी। इसमें दो राय नहीं कि वह एक अच्छा मुकाम हासिल करेगी। सच में उस बदनसीब का नसीब ईश्वर ने बहुत सोच-समझकर ही लिखा होगा।
फिर दिल से आशीष निकला कि ईश्वर उसे सलामत रखे और वह आसमान की बुलन्दियों को छुए।
मेरे प्रकाशित लघुकथा संग्रह :
‘मन की आँखें (दलहा, भाग- 1) से,,,।
लघुकथाएँ “दलहा, भाग 1 से 8” में प्रकाशित हैं।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
सुदीर्घ एवं अप्रतिम साहित्य सेवा के लिए
लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त
हरफनमौला साहित्य लेखक।