बदजुबानी
किसी एहमक ने की बदजुबानी ,
उसकी सजा सारा हिन्दुस्तान क्यों भुगते?
भूल गया जो वोह अपनी हद ,
माना उसके नश्तर है तुम्हें चुभते ।
देख लो तुम एक बार अपना भी गिरेबान,
तुम्हारे किरदार में भी कितने दाग दिखते ।
मजहब से पहले काश तुम वतन को मानते ,
तो अपने गुरूर को कुर्बान कर अमन की सोचते ।
मगर तुम तो जैसे मौके की फिराक में थे ,
होते गर तुम वाकई इंसा तो हाथ में पत्थर न उठाते।
“अनु” पूछती है आप से जंग के मौके सब ढूंढते ,
क्यों कोई वतन परस्ती के वास्ते मुहोबत के लिए
हसीन मौके क्यों नहीं तलाशते।