बताओ तो जरा, अब मैं किधर जाऊँ!
गजल
बताओ तो जरा , मैं अब किधर जाऊँ।
खुदा का घर जिधर भी हो उधर जाऊँ।
ग़मों की चादरें तो ओढ़े बैठा हूँ,
यकीं रख्खो , न ऐसा हूँ की मर जाऊँ।
बुला लो सब रकीबो को जनाजे में,
कहीं ऐसा न हो दिल से उतर जाऊँ।
अगर मजबूत हूँ मैं हौसलों से तो,
दुआ करना कि मैं थोडा बिखर जाऊँ।
मुझे अब जाने से क्यों रोकते हो तुम,
तुम्ही ने तो कसम दी है कि घर जाऊँ।
दिलो में आग है ये बात बस है क्या,
कहो तो बर्फ को भी ठंडा कर जाऊँ।
ख़ुशी होगी बहुँत , ये जानता हूँ मैं,
शुभम् के जैसे गर बेमौत मर जाऊँ।