बताओ जुल्फ़ में बादल ठहर गया कैसे
—–ग़ज़ल—-
1212–1122–1212–22/112
ग़मों का दौर ये ——-मेरा गुज़र गया कैसे
ये आँसुओं का—–समुन्दर उधर गया कैसे
क़रम तुम्हारा था लेकिन ये सोचता था मैं
कि मेरा बिगड़ा मुक़द्दर सँवर गया कैसे
लबों पे लाली है सूरज की झील सी आँखें
बताओ जुल्फ़ में बादल ठहर गया कैसे
हटाया उसने जो चिलमन तो सबने ये सोचा
अँधेरी शब में ——–उजाला पसर गया कैसे
जो आदमी में न था हौसला तो बोलो फिर
बिना परों के भी वो चाँद पर गया कैसे
अदाएँ और नज़र कातिलाना थी “प्रीतम”
न पूछिए कि ये जानो जिगर गया कैसे
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)