बढ़ रही नारी निरंतर
** गीतिका **
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बढ़ रही नारी निरंतर तोड़ हर दीवार।
और करती जा रही है स्वप्न सब साकार।
दूर उससे है नहीं अब ज्ञान और विज्ञान।
लक्ष्य नूतन छू रही है देखिए हर बार।
अब कदम सीमित नहीं हैं चल पड़े निज राह।
कल्पनाएं ले रही हैं नित्य नव आकार।
दूर कर देती स्वयं ही मार्ग के अवरोध।
हर स्थिति में पहुंच जाती मंजिलों के पार।
खूब करती मन लगाकर शौर्य का हर कार्य।
देश सेवा के लिए मन में भरा है प्यार।
नारियां दुहरा रही प्राचीन फिर इतिहास।
अब नहीं स्वीकार कर सकती किसी से हार।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)