बड़ी मुश्किल में है ये डगर !
बड़ी मुश्किल में है ये डगर !
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इस जीवन का डगर
मुश्किल है इस कदर
डरना नहीं है मगर
बस, चलते जाना है
शहर – दर – शहर ।।
जाता हूॅं मैं जिधर
पड़ता हूॅं मैं बिफर
खोजता हूॅं मैं जैसा
कहीं पे नहीं वैसा शहर।।
कैसे कटेगा ये सफ़र
मुश्किल में हर डगर
कुछ करना है मगर
मिलता कहाॅं वो शहर।।
हर जगह वही मंज़र
सभी भोंकते कई खंजर
जो भूमि उपजाऊ, उर्वर….
वो भी हो जाता काफ़ी बंजर।।
जिसे समझता हूॅं हमसफ़र
वो भी करती नहीं कोई कदर
उम्र सारी बीत गई…. मगर ,
वो अपनापन गया किधर ?
बस, ठोकरें खा रहा हूॅं….
हर शहर – दर – शहर ।।
हर तरफ भ्रष्टाचार के कीड़े ने
सबकी सोच को लिया है जकड़
फिर भी सरकारी तंत्र की
इसपे नहीं है कोई पकड़ ।।
गिद्ध सी दृष्टि रहती सबकी
उन्हें नहीं कोई अपनी फिकऱ
जब कभी महिलाएं हैं गुजरती
उन्हीं पे होती सबकी नज़र ।
कहाॅं से लाऊॅं मैं वैसा शहर
बड़ी मुश्किल में है ये डगर।।
चहुॅंओर अन्याय का मचा कहर
जिधर-जिधर पड़ती मेरी नज़र
कैसे होगा सबका गुजर – बसर
जहाॅं हर बात पे ही सबकी अकड़
फिर भी करता हूॅं हिम्मत, मगर
कहाॅं से लाऊॅं मैं वैसा शहर
बड़ी मुश्किल में है ये डगर ।
बड़ी मुश्किल में है ये डगर ।।
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 02-09-2021.
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