बड़ी झील भोपाल
भोर हूं, स्वप्निल सुनहरी
और सजीली शाम हूं
भोज का सृजन हूं मैं
हर जिंदगी का गान हूं
सागर सा बिशाल हूं
मैं बढ़ा ताल हूं
इंसान और इंसानियत को
प्यारा सा एक पैगाम हूं
लरजती झीलों से भरी
शैल शिखरों से घिरी
मैं वादी ए भोपाल हूं
हर एक दिल का गीत हूं
सप्त स्वर संगीत हूं
सब प्राणियों की मीत हूं
बंसी मधुर नवनीत हूं
झूमती लहरों का मैं
शान ए संसार हूं
शिखर चूमते मंदिर मस्जिद
गिरजे और गुरुद्वारे
कहीं है गुलशन, कहीं सघन वन
कहीं बसा है शहर किनारे
प्राचीन किले और महल झरोखे
मेरे अनमोल नजारे
किसी भी हिल से देखो मुझको
मेरे नयनाभिराम नजारे
हरे भरे सब शैल शिखर
मेरे चितचोर किनारे
हर एक का दिल को भा जाते हैं
प्रेम शांति और अमन है मेरे वृहद किनारे