जब व्यक्ति वर्तमान से अगले युग में सोचना और पिछले युग में जी
मन की चाहत
singh kunwar sarvendra vikram
मां -सही भूख तृष्णा खिलाया सदा
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
वसंत
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
चीत्कार रही मानवता,मानव हत्याएं हैं जारी
ग़ज़ल (रखो हौंसला फ़िर न डर है यहाँ)
आग पानी में लगाते क्यूँ हो
शुभ रात्रि मित्रों.. ग़ज़ल के तीन शेर
झुका के सर, खुदा की दर, तड़प के रो दिया मैने
उनके आने से सांसे थम जाती है
प्रयास
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
तुम्हारा दिल ही तुम्हे आईना दिखा देगा
विदा पल कहूं कैसे, बिटिया आती रहना
अगहन माह के प्रत्येक गुरुवार का विशेष महत्व है। इस साल 21 नव