बड़ा कठिन है कृष्ण होना …
हम तड़पते हैं इधर ,
वो भी तो उधर तड़पता होगा ।
जैसे हम आंसू बहाते है ,
वो भी महल के किसी कोने में सुबकता होगा ।
याद तो आती होगी उसे अपने गांव की ,
उन यादों के साय में बेचारा लिपटा रहता होगा ।
गोप गोपियों का प्यार ,
नंद बाबा और यशोदा माता का दुलार भी ,
उसे अवश्य याद आता होगा ।
कभी तो मन हिलोर मारता होगा ,
कहता होगा ” चल कान्हा ! ब्रज को चलते है ।”
मगर फिर कर्तव्य पैरों में अपनी सख्त बेड़ियां,
डाल देता होगा ।
मन फिर खुद को मारकर बैठ जाता होगा ।
कौन समझे उसकी व्याकुलता,उसकी विवशता ,
कभी कभी तो चुपके चुपके रो भी देता होगा ।
वहां इसके आंसू कौन पोंछता होगा ।
सच ! कितना कठिन है कृष्ण होना ,
यह तो राधा का ह्रदय ही समझता होगा ।