बज़म-ए-दुनियाँ से दूर कहीं ले चल
बज़म-ए-दुनियाँ से दूर कहीं ले चल
महकते गुल का सुरूर कहीं ले चल
ख्वाहिश-ए-जन्नत है यार मुझे भी
इस मोहब्बत का नूर कहीं ले चल
धड़कन भी दिल में जाना मैनें
है उल्फ़त का दस्तूर कहीं ले चल
गम की दौलत के मकां में शहर में
हैं जीने को मजबूर कहीं ले चल
मूरत हो गये वफ़ा करने वाले
यहाँ बेवफा मशहूर कहीं ले चल
अब तो ये आलम है मज़बूरियों का
हैं तिरे ग़ म भी मंज़ूर कहीं ले चल
परवाज़ दे अब हसरतों को अपनी
‘सरु’ के हौसले भरपूर कहीं ले चल