बच्चों के लिए एक लघु कविता
बच्चों के लिए एक लघु कविता
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ऐसे आ जाती है, ये प्यारी चिड़या,
जल के भी अंदर, दूर लक्ष्य तक,
अपने भोजन को, पाने को, ये,
और बिना डरे और बिना ये सोचे,
कि कैसे ढूंढेगी, वो अपना भोजन,
या शिकार, जल के, अंदर भी.
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उसे पकड़ कर, फिर उड़ जाती,
मानो हो ये, कोइ खेल सुन्दर बस.
वरना उड़ती दूर, ऊंचे गगन में,
हवाओं के ऊपर, छूने लेने, आकाश को,
और छु लेती, आसमान के बादलों को भी,
फिर आ जाती उड़ कर, अपनी धरती पर.
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तुम भी देख इसे. और ये सीखो,प्यारे नन्हें-मुन्नो,
इस चिड़िया से, जीने की, ये कला सुहानी,
कैसे उड़ते और भेदते हैं, जल को भी,
बिना डरे, भयभीत हुए, जब, अपने लक्ष्य को,
पाने पर हो, जीवन निर्भर –
तब पृथ्वी हो या हो, कोई ऊंचा नभ हो,,
या फिर, हो भेदना जल या अंतरिक्ष को ही.
Ravindra K Kapoor
Original poem of Nov. 2018
Reposted on 26 11 2919