बच्चा
बच्चा जीवन बहार,
भगवान का रूप|
निश्छलता औ’प्यार
का सुदृढ़ प्रतिरूप|
तुतले शब्दों की
कितनी प्यारी बोली|
कानो में स्वर ने
ज्यों मिश्री हो घोली|
हार जीत की कुंठा से
बिल्कुल मुक्त|
अपने में खेलता है
होकर उन्मुक्त|
ममता का धन,
बनकर सुमन|
बिखेरता है आँगन में
दिव्य हास पावन|
पीढ़ी का जनक,
संबंधों की धुरी|
देश का भविष्य
भरता प्यार से दूरी|
प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव फेज -2,
जयपुर रोड़ (अलवर)