बच्चा सा मन
जब हम छोटे से बच्चे थे
वो दिन भी कितने अच्छे थे
भाई-बहन की प्यारी दुनिया
प्यारे थे जब गुड्डे गुड़िया
खेला करते छिपम छिपाई
और कभी पकड़म पकड़ाई
कभी पाँव टिक्का खेले थे
रंगों के कितने मेले थे
करनी पड़ती भले पढ़ाई
मगर दोस्ती खूब निभाई
पापा मम्मी के प्यारे थे
भाते ये चंदा तारे थे
जाने क्यों हम बड़े हो गये
यूँ पैरों पे खड़े हो गये
लाड़-प्यार वो हमसे छूटा
सपना जैसे कोई टूटा
पर अब भी बच्चा सा मन है
चाहे बदला ये जीवन है
01-12-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद।