बच्चा गरीब का
अचानक से हुमकते,
ज़िद करते नन्हे बच्चे,
बड़े हो जाते हैं।
जब बाप के पैरों के छाले,
उनसे लाख छुपाने पर भी,
नज़र आ जाते है।
खुद के पुराने कपडे,
सकीना धूल के,
ईद के लिए चुप चाप,
छज्जे पर डाल आती है,
जब माँ फटी चादर ,
को सिल सर को छुपा,
पड़ोसियों के घर जाती है।
फीकी सिवईयां भी,
जबीं मुस्कुरा के खाती है,
क्योंकि लड़कियां गरीब की,
जल्दी से बड़ी हो जाती हैं।
जिस उम्र में बच्चा ईदी से ,
मिठाइयां खाता है,
प्रेम चंद का प्यारा हामिद,
ईदगाह से चिमटा लेके आता है।
क्योंकि ज़िम्मेदारियाँ,
बड़ी हो जाती हैं बचपन से..
और वो कर जाती हैं,
जो बस एक गरीब ही कर सकता है..
क्योंकि बच्चा गरीब का,
बच्चा नही बूढ़ा पैदा होता है।
नाजुक जिस्म में सब्र ओर जब्र लिए..
नन्हे कंधो पर बड़ी जिम्मेदारियां लिए,
फिरता खुद्दारी की लाठी लिए,
बच्चा गरीब का ..