“बचपन”
“बचपन”
कंचे भौरे का खेल है वो
कैसा सुनहरा दौर है वो।
वो उछल कूद वो दौड़-धूप,
मस्ती के थे कई रंग-रूप।
वो सपनों की शहनाई बुलाती है,
रह-रह के वो जिन्दगी याद आती है.
“बचपन”
कंचे भौरे का खेल है वो
कैसा सुनहरा दौर है वो।
वो उछल कूद वो दौड़-धूप,
मस्ती के थे कई रंग-रूप।
वो सपनों की शहनाई बुलाती है,
रह-रह के वो जिन्दगी याद आती है.