बचपन
छोटे-छोटे खुशियों में
खुशियाँ ढुँढ कर खुश रहे,
और उसी में झूमता रहे,
बचपन इसी का नाम है।
न किसी बात की चिन्ता
न किसी बात का फिक्र,
न ज्यादा की इच्छा,
न कम का कोई मलाल ।
जो मिल गया उसी मे
है सारा जहान।
खेल-खेल में ख्वाब बुनना,
उन्ही परिस्थितियों
के अनुसार ढालना,
और खुश रहना
यही तो है बचपन।
जो मिल जाए
उसका पूरा सम्मान।
जो नही मिला
उसके लिए न
है कोई अपमान।
जो है उसी मे
हो लेते है खुश,
और जुगार लगाकर,
पुरा कर लेते है
उसी मे अपनी इच्छा।
चार दोस्त क्या मिल गए,
हो जाता उनका मौज।
उनके साथ खेलकर ही
हो जाते है सब खुश।
सारे गम, तकलीफ वें
मिनटों मे जाते है भूल ।
इसीलिए तो हम बार-बार
बचपन को जीना चाहते है।
~ अनामिका