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27 Jun 2020 · 1 min read

बचपन

बचपन में छोटी छोटी ज़िद पर
चोटी ही नहीं बनवाई ।
ऐसी लड़ाई मैंने माँ से
ना जाने कितनी बार लड़ाई ।

लम्बी लम्बी आंहे भर के
कितना सुकुड़ कर रोती थी ।

मुझे याद है , जब छोटी छोटी गलतियों की
वो डाँट कैसी होती थी!!

भरी दोपहर में चुपके से
मोहल्ला नाप आती थी ।

गुड्डे गुड़िया की शादी कराई, घर-घर खेला
और छुपके से आकर सो जाती थी ।

अब बड़ी हो गई हूँ और
गोल रोटी बनाना भी सीख लिया ।

और सीख लिया, माँ से घर को समेटना ,
खुद की ख्वाहिशों को दबाकर घर का बजट बनाना ।

और सीखा मैंने आम का अचार , घर की सजावट ,
परिवार के रीति-रिवाज और परम्पराएँ निभाना ।

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 324 Views
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