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2 Aug 2017 · 1 min read

बचपन

दूर देखा तोह कोई ज़ोर ज़ोर से हंस रहा था
लगा जैसे मुझ पे ही निगाहे गड़ाये खड़ा था
पास गया तोह कोई जान पेचान वाला लगा
अरे यह तोह बचपन था जो पीछे छुट गया

खिल खिला के हंस के ज़ोर से बोला वह
क्या हुआ खुश नहीं हो,चेहरा क्यों लटका है
शौक था बड़े होने का,अब क्यों लगा झटका है
तेजी से भागे छोड़कर तुम मुझे जवानी की और
कहा था कि भाई बहुत अच्छा लगता है उसका शोर

ज़ोर ज़ोर से बचपन मार रहा था जवानी पे ताने
और मन जवाब देने के लिए बुन रहा था ताने बाने
मैं निरुत्तर खड़ा सोच रहा था,क्या यही मुझे पाना था
क्या यही जीवन का रास्ता था जिसपे मुझे जाना था
न जाने कहाँ खो गयी है वह भूले बचपन की मस्ती
जब अनोखा ही मज़ा देती थी वह कागज़ की कश्ती
गलियों की धूल जो हर मस्ती का लगती थी solution
अब बैठा उसी को कोस रहा हूँ जो लगने लगी है pollution

ऐसा सोचते सोचते न जाने कहाँ से कहाँ आ गए
न जाने बड़े होने की फ़िराक में कितना समय खा गए
सोचा अभी भी समय है थोड़ा अपने लिए भी जी लूँ
वही मस्ती वही बेफिक्री घूँट घूँट करके फिर से पी लूँ
फिर से पी लूँ…

..विवेक कपूर

Language: Hindi
870 Views
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