बचपन
खेलकूद भी चलता रहता है
और लड़ना झगड़ना भी,
बचपन में हम ऐसे ही होते हैं।
कोई बात देर तक ठहर ही नहीं पाती,
साथ खेलना जरूरी होता है।
पर ज्यों ही हम बड़े होते हैं ,
रिश्तों की टहनी पर उग आये
कांटें ही गिनते रह जाते हैं।
फूल मुरझाता रह जाता है और
रिश्तों की खुश्बू कम हो जाती है।
लक्ष्मी सिंह