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27 Jul 2018 · 1 min read

बचपन सी सौगात न कोई

झूठी मूठी बात न कोई
बचपन सी सौगात न कोई

सच के आगे झूठ कपट की
होती है औकात न कोई

जिसमें सपने देख न पायें
होती ऐसी रात न कोई

पतझड़ में जो गिरा नहीं हो
पेड़ों का वह पात न कोई

जिसका हल हम ढूंढ न पायें
ऐसे तो हालात न कोई

जाने कब क्या कर बैठेगी
मानव जैसी जात न कोई

चोट बहुत हैं दुनिया में, पर
अपनों जैसी घात न कोई

जीना चाहो अगर शान से
माँगो तुम खैरात न कोई

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