बचपन याद किसे ना आती ?
बचपन याद किसे ना आती ?
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बीत गए बचपन के वो दिन
स्मृतियों से भरा-पूरा पिटारा
मस्ती भरा अल्लड़ का दिन
खेल कूद हुल्लड़ में बीतना
खाना पीना गाना घूमना
बेताज वादशाह बन गाँव
खेत क्यारी खलिहानों में
बिल्ली कुत्ते संग दौड़ लगा
धावक हो लक्ष्यराज बनना
गिल्ली डंडा छुपम छुपाई
मस्ती भरा खेल कर आना
खो खो कबड्डी दंगल फसल
कटे खेतों का भूस्वामी बन
क्रिकेट भजन कीर्तन कराना
मार पिटाई करना व कराना
हाथ पैर में चोट लगा लगा
घर में डाँट फटकर सुनना
रीत प्रीत रोज नया पुराना
बहना मार बाहर को जाना
पढ़ाई लिखाई बाद में होना
स्कूल से काम नहीं मिलना
रोज रोज झूठ एक बहाना
मास्टरजीडंडे सपनें मेंआना
खेल खिलाड़ी परवाना था
झूठ प्रति क्षण एक सहारा
गाल पर दना दना चटका
दूधिया दूध रोज उठौना था
बहन भाई पर काम पड़ना
आदेश दे छोटे से करबाना
नहीं होनें पर रौब दिखाना
किसी समय कहीं भी कोई
गलती निकाल पिटाई होना
बचपन में आज्ञा अनुशासन
पाढ़ ज्ञान नव नूतन नमूना
स्नेह प्यार दिखा संकट में भी
बचा अपना मान बढ़ाना था
माँ पिता के आँखों का तारा
जग धरोहर अमूल्य नगीना
भारत माता का टिका आस
अभिमान एक अरमान था
बचपन याद किसे ना आती
याद करें निज बचपन को
कभी होता ना पुराना जो
बचपन एक बार याद कर
मस्ती भरी कहानी सुनाना
असीम ऊर्जा एहसास कर
बचपन किसे याद ना आना
मस्ती में तरो ताजे होना था
दो बार आता ये जीवन में
जन्म माता आँचल की छांह
यौवन चीर ज़रा हाथ सबल
परिवार छड़ी लिए इक सहारा
चलते वक़्त याद रखना कभी
अलविदा ना कहना पर विदाई
ले खाली हाथ गले धरा धरणी के
गोद चिर निंद्रा से सकून पाना
सत्य अर्थ ये जीव जीवन का
जिस पर टिका श्रृष्टि संसार है ।
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तारकेश्वर प्रसाद तरूण