बचपन — फिर से ???
ये हर दिन की मेहनत
ये टेंशन ये ज़हमत
मुझे क्यों बड़ा कर दिया मेरे राम
नही है संभलते ये जीवन के काम।
प्रभु सुन ले मेरी करुण ये पुकार
बना फिर से बच्चा, कर दे उपकार
वो बेफिक्र बचपन, वो अल्हड़ लड़कपन
तू सुन ले पुकार , तू सुन ले पुकार।
सुबह मुझको मीठी सी निंदिया थी आई
तभी माँ का स्वर वो दिया यूं सुनाई।
चलो आँख खोलो, ये सुबह है आई
जाना है शाला, है करनी पढ़ाई।
उठी चौंक कर , माँ यहाँ कैसे आई?
भला चाहती क्यों करूँ मैं पढ़ाई।
ज़मीन पर जो चाहा, कदम रखना भाई
पैरों से निकली ज़मीन मेरे भाई।
सुन ली थी ईश्वर ने मेरी पुकार,
लौटाया था बचपन फिर एक बार
खुशी से मैं फूली नहीं थी समाई,
माँ फिर से मेरे पास आई
मुझे डाँट बोली, जाओ नहाओ
नहा कर के आओ, फिर कुछ खाओ।
नहाया, फिर खाया, फिर बस्ता उठाया
उफ्फ कितना भारी ? ये बस्ता है या अलमारी ?
क्या कर रही हूँ मैं , वेट लिफ्टिंग की तैयारी?
कक्षा में सखियों से करनी थी बातें
जब भी मैं बोलूँ , अध्यापिका डांटें
पढाई भी करना नहीं था आसान
नन्ही सी जान, उस पर इतने काम|
कक्षा में पूरा हुआ जब न काम
खेल के पीरियड का काम हुआ तमाम |
घर में जो आई तो मम्मी ने डाँटा
टिफिन क्यों न खाया? सवाल यह दागा|
बहाना मेरा कोई माँ को न भाया
बोरिंग सा खाना , वही मैंने खाया|
मिला था स्कूल से बहुत सारा काम
करते-करते हुआ दिन तमाम |
दिल चाहता था कि सखियाँ बुलाऊँ
नाचूँ , मैं गाऊँ, महफिल जमाऊँ
मगर याद आया कि कल है इम्तहान
गणित वो विषय है ले लेता है जान |
सोशल स्टडी का है project बनाना
साइंस में बीजों को घर पर उगाना
हिन्दी की टीचर को कविता सुनाना
नेशनल डे के लिए झंडा सजाना |
नन्ही सी जान और इतने सारे काम
बच्चों का जीवन नहीं है आसान
अभी तो गिनाए थे एक दिन के काम
यूं ही गर रहे तो बस बोलो राम !
प्रभु फिर से सुन ले मेरी अब पुकार
मुझे अपनी पहली अवस्था से प्यार
वो टेंशन , वो मेहनत सभी है स्वीकार
पढाई से मुझको बचा ले करतार |
मंजु सिंह गुप्ता